24 October 2006

उत्कृष्ट हाइकु


उत्कृष्ट हाइकु

20 January 2006

Dr. Angelee









Dr. Angelee Deodhar

यदि कोई पूछे तो .........If someone asks



पुस्तक समीक्षा

यदि कोई पूछे तो .........

हाइकु कविता अब भारतवर्ष में काफी चर्चित है। हिन्दी में हाइकु लिखने वालों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। यह इस बात का प्रमाण है कि हाइकु कविता के प्रति भारतीय साहित्यकारों में आकर्षण बढ़ा है। भारत में हाइकु का प्रचार प्रसार करने वालों में शीर्षस्थ नाम प्रो० सत्यभूषण वर्मा का है। प्रो० वर्मा से प्रेरित होकर कमलेश भट्ट कमल ने 'हाइकु ८९` तथा 'हाइकु ९९` शीर्षक से दो महत्वपूर्ण हाइकु संकलन संपादित किए और उन्हें प्रकाशित कराया। यह क्रमश: १९८९ तथा १९९९ में प्रकाशित हुए। 'हाइकु ८९` में ३० हाइकुकार तथा 'हाइकु ९९` में ४० हाइकुकारों के चुने हुए हाइकु सम्मिलित किए गए। १ध्४उस समय तक के प्रतिनिधि हाइकुकार१ध्२ हाइकुकारों की यह संख्या निरंतर बढ़ रही है। प्रो० वर्मा की प्रेरणा से ही डॉ० जगदीश व्योम ने 'हाइकु दर्पण` पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया, यह पत्रिका हिन्दी हाइकु कविता को समर्पित हाइकु की एकमात्र सम्पूर्ण पत्रिका है। इस पत्रिका से हाइकुकारों को हाइकु प्रकाशन का गरिमामय मंच मिला और हाइकु को लोगों लोगों ने गम्भीरता से लिया।
भारतवर्ष में हिन्दी हाइकुकारों में से अनेक हाइकुकार ऐसे हैं जो हाइकु के मूल उत्स को जानना चाहते हैं, हाइकु के जनक जापान देश से परिचित होना चाहते हैं और जापान के प्रसिद्ध हाइकुकारों के विषय में अधिक से अधिक जानने की इच्छा रखते हैं। परन्तु भाषा उनके मध्य में दीवार बनकर खड़ी हुई है। जापानी भाषा का ज्ञान न होने के कारण जापानी हाइकुकारों के विषय में जानकारी नहीं हो पाती है और उनकी हाइकु कविताओं से भी पूरी तरह से लोग अनजान ही बने हुए हैं। बासो, इस्सा, मासाओका शीकी एवं अन्य हाइकुकारों के विषय में जानने की जिज्ञासा इधर जैसे जैसे हाइकु कविता लोकप्रिय हुई है; और बढ़ी है। डॉ० अंजली देवधर ने मासाओका शीकी की जीवनी, उनके संस्मरण, उनके दुर्लभ चित्र तथा उनके चुने हुए हाइकुओं का अंग्रेजी के साथ साथ हिन्दी अनुवाद करके तथा उसे ''यदि कोई पूछे तो.....`` शीर्षक से पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित करवाकर एक अमूल्य भेंट हिन्दी हाइकुकारों को दी है। 'मात्सुयामा म्यूनिसिपल शीकी किनन म्यूज़ियम` के बारे में भी भारत में रहने वाले हाइकुकारों को महत्वपूर्ण जानकारी मिली है। म्यूज़ियम ने यह कार्य डॉ० अंजली देवधर को करने की अनुमति देकर अप्रत्यक्ष रूप से हाइकुकारों, हाइकु पाठकों तथा हाइकु के जिज्ञासुओं व शोधार्थियों पर बड़ा उपकार किया है।
'मासाओका शीकी` के हाइकु उनकी जीवनचर्या के कतिपय क्षणों की मौलिक प्रस्तुति है जो उन्हें अनुभव हुआ उसे ज्यों का त्यों लिख दिया। डॉ० अंजली देवधर ने जापानी के हाइकुओं को अंग्रेजी के माध्यम से हिन्दी में अनूदित करके अति मह>वपूर्ण कार्य किया है। शीकी की हाइकु कविताओं का मूल भाव बना रहे, इसका पूरा ध्यान रखा गया है। द्विभाषी अनुवाद काफी कठिन कार्य है परन्तु त्रिभाषी -जापानी- अंग्रेजी- हिन्दी तो सर्वथा कठिनतम कार्य है। परन्तु डॉ० अंजली जी ने मानों अपनी पूरी शक्ति, पूरी मेधा एवं अपनी हाइकु यात्राओं के समग्र अनुभवों की महनीय पूँजी लगाकर इस गुरुतर कार्य को पूरा किया है।
पुस्तक में मासाओका शीकी का जीवन वृ>ा वषवार व बिन्दुवार दिया गया है जिसे अंग्रेजी व हिन्दी दोनों भाषाओं में दिया गया है। इसे पढ़ने के बाद पाठक को ऐसा अहसास होगा कि वह शीकी को अपने मध्य देख रहा है। शीकी कहीं उसके बीच आकर अमूर्त रूप में अवस्थित हो गए हैं। वास्तव में यह प्रस्तुति की सफलता का परिचायक है।
हाइकु के अनवाद के साथ-साथ हाइकु विशेष की रचना का समय, हाइकुकार शीकी की अवस्था हाइकु की रचना के समय१ध्२, हाइकु रचना के समय हाइकुकार की मन:स्थिति और तत्कालीन परिस्थितियाँ इन सब की जानकारी प्रत्येक हाइकु के साथ दी गई है। इससे हाइकु अत्यन्त सम्प्रेषणीय हो गए हैं और प्रत्येक हाइकु के साथ पाठक शीकी की मनोदशा के साथ उसी भावभूमि पर शीकी से स्वयं को जुड़ा हुआ पाता है। यह सब यदि किसी अनूदित पुस्तक को पढ़कर संभव है तो अनुवाद की सफलता का इससे बड़ा और कोई प्रमाण भला क्या होगा?
डॉ० अंजली देवधर अंग्रेजी भाषा की विदुषी हैं परन्तु हिन्दी भाषा उनके रोम-रोम में समाहित है। यही कारण है कि अनुवाद करते समय वे अत्यन्त सावधानी वर्तती हैं, प्रत्येक शब्द पर अनेक कोणों से विचार करती हैं, शब्द के सटीक प्रयोग और उसकी अर्थ व्यंजना का पूरा पूरा ध्यान रखते हुए उसका प्रयोग करती हैं। अनुवाद में उन्होंने विशुद्ध हिन्दी शब्दों के प्रति अतिरिक्त व्यामोह से स्वयं को बचाया है तथा संप्रेषणीयता पर पूरा ध्यान केन्द्रित रखा है। डॉ० अंजली देवधर जी का यह कार्य स्तुत्य है और यदि वे भविष्य में अन्य जापानी हाइकुकारों की अन्य सुप्रसिद्ध कृतियों का हिन्दी अनुवाद कर सकें तो जापानी संस्कृति व साहित्य के साथ भारतीय संस्कृति व साहित्य के मध्य आपसी साहित्यिक आदान-प्रदान तथा एक-दूसरे के साहित्यिक धरातल को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कार्य हो सकेगा। इस पुस्तक का भरपूर स्वागत होगा और मासाओका शीकी को केवल नाम से ही नहीं उनकी हाइकु कविताओं के साथ उन्हें याद रख सकेंगे।
जापानी हाइकु और हिन्दी हाइकु के मध्य भाषा का जो बड़ा पहाड़ खड़ा हुआ है उसके मध्य डॉ० अंजली जी की यह पुस्तक खिड़की खोलने का कार्य करती है, भविष्य में यह उम्मीद की जा सकती है कि यह खिड़की बड़े दरवाजे का आकार ले सकेगी और शीकी द्वारा अपने सदा जीवित रहने १ध्४कवि कभी नहीं मरता जब तक उसके द्वारा रचित साहित्य को पढ़ने वाले पाठक हैं की गर्वोक्ति हिन्दी हाइकुकारों के मध्य भी संचरित हो सकेगी-
if someone asks
say I'm still alive
autumn wind.

यदि कोई पूछे
कहो मैं अभी जीवित हूँ
पतझड़ की हवा !

पुस्तक का आवरण सुन्दर व आकर्षक है। १५८ पृष्ठ की इस पुस्तक का मुद्रण त्रुटिहीन है एवं अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है। पुस्तक प्रकाशन के अवसर पर डॉ० अंजली देवधर जी को मैं हार्दिक बधाई देता हूँ।
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समीक्षक-
-डॉ० जगदीश व्योम